Sunday, December 28, 2025

বাড়ি a.k.a House

অনেক মাস ধরে পিছিয়ে পিছিয়ে শেষমেশ কলকাতা যেতেই হলো। মার্চ মাসে বাবা চলে যাওয়ার পর কলকাতার প্রতি মোহ তা কেটে গেছে বলা যায়। ২০২১-এ মা যাবার পরও কলকাতার বাড়িতে বাবা থাকতে দুজনকে-ই একটু খুঁজে পাওয়া যেত। আলাদা হয়ে গেলেও, দুজনকে একসাথে ভাবা যেত। এইবার যখন বাড়ি ফিরলাম, সেই কৃষ্ণচূড়া গাছের তলায় পাতলা গলিতে, মনে হলো সব কিছু আগের মতোই আছে—কিন্তু তবুও একটা অচেনা জায়গা। বিদেশ-বিভুঁয়ে, কাজের চাপে পড়লে কিংবা মন খারাপের সময়, "বাড়ি যাবো" বলে যে কাল্পনিক আশা ছিল, সেটা বাকি জীবনের জন্য অকেজো হয়ে দাঁড়ালো।



बाहरवाला a.k.a The Outsider

देहरादून में आए हुए मुझे भी अब 8 साल हो गए और मैं उस मुकाम पे पहुंच चुका हूं कि मेरे आने के बाद कितने बदलाव आए हैं, उन पर अपने विचार रख सकूं। यहां के जंगल, पास के पहाड़ और लुभावना मौसम इसे खास बनाते हैं और मेरे रहते-रहते ही इनमें मैंने काफी बदलाव देखे हैं। जो पहले से ही देहरादून में हैं, उन्होंने तो और भी ज्यादा फर्क देखा होगा। बाकी स्थानीय लोगों के बातचीत में अक्सर इस अनचाहे परिवर्तन की सारा जिम्मेदारी "बाहरवालों" पे ठोप दी जाती है और इस पर कुछ हद तक सहमति भी की जा सकती है। लेकिन जरा और सोचूं तो ख्याल आता है कि मैं भी तो बाहरवाला ही हूं। पर्यावरण से जुड़ा काम जरूर करता हूं पर इस दोषारोपण के खेल में मैं भी दोषियों के कटघरे में ही खड़ा हूं।