देहरादून में आए हुए मुझे भी अब 8 साल हो गए और मैं उस मुकाम पे पहुंच चुका हूं कि मेरे आने के बाद कितने बदलाव आए हैं, उन पर अपने विचार रख सकूं। यहां के जंगल, पास के पहाड़ और लुभावना मौसम इसे खास बनाते हैं और मेरे रहते-रहते ही इनमें मैंने काफी बदलाव देखे हैं। जो पहले से ही देहरादून में हैं, उन्होंने तो और भी ज्यादा फर्क देखा होगा। बाकी स्थानीय लोगों के बातचीत में अक्सर इस अनचाहे परिवर्तन की सारा जिम्मेदारी "बाहरवालों" पे ठोप दी जाती है और इस पर कुछ हद तक सहमति भी की जा सकती है। लेकिन जरा और सोचूं तो ख्याल आता है कि मैं भी तो बाहरवाला ही हूं। पर्यावरण से जुड़ा काम जरूर करता हूं पर इस दोषारोपण के खेल में मैं भी दोषियों के कटघरे में ही खड़ा हूं।
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